27 November 2009

मुंबई हमले की बरसी ?




26 /11 यानी भारत का 9 /11  ..इससे किसको इनकार हो सकता है कि इस दिन भारत की आत्मा पर आतंकवादियों ने गहरे जख्म लगाये. जो कुछ देखा गया ,सुना गया ,बताया गया वह बेहद खौफनाक था. डर के जितने चेहरे हो सकते हैं ,वह उन सभी चेहरे में हमारे सामने नाच रहा था.यह हमला  सीरियल ब्लास्ट से भी खतरनाक था, जहाँ कुछ या कई लोग आतंकी हमले में  पल भर में सांस लेते लोगों की सूची से मिटा दिए जाते हैं ..लेकिन यहाँ तो हिंसा की लगातार चलने वाली तस्वीर हमरे सामने थी ..टीवी सेटों पर लगता दिखाई जाती हुई...लेकिन मैं यह सोचे बिना नहीं रह सकता कि क्या सचमुच ऐसा था.?.क्या मुंबई हमले ने सचमुच हमारी आत्मा पर खरोंचे पैदा की थी..? और अगर हमारे पास सचमुच कोई आत्मा है तो मुंबई हमले से पहले के हमलों ने इस पर जख्म क्यों नहीं लगाया था..मुंबई के लोकल ट्रेन में हुए विस्फोटों  कि कड़ियों से ये हमला क्यों ज्यादा दुःख पैदा करने वाला था..देश के हर चप्पे पर आतंकी हमलों से जो खूनी होली लिखी जा रही थी उसने हमारी आत्मा पर जख्म क्यों नहीं दिए थे? क्या इसलिए जो जल रहा था वह वह शान शौकत का प्रतीक होटल  ताज और त्रैदेंत था किसी व्यापारी की छोटी दुकान नहीं? या जो मारे जा रहे थे वे पैसे वाले ,अमीर लोग थे..ऑफिसों और फैक्टरियों में में काम करने वाले साधारण हमारे आपके जैसे इंसान नहीं? अगर हमारी  आत्मा पर 26 /11  से पहले कोई जख्म नहीं आया था तो कैसे मान लिया जाए कि उस दिन ही हमारी आत्मा जख्म खाने के लिए उपस्थित हो गई थी . हमारी  आत्मा पर कोई जख्म -वख्म उस दी भी नहीं आया ..हाँ टीवी पर ऐसा खौफनाक नजारा हम पहली बार देख रहे थे इसलिए टीवी सेटों पर चिपके हुए थे..और चैनेलों के गणित में यह हमला एक फायदेमंद  सौदा बन कर आया था इसलिए हमले का हर खूनी मोड़ उनको वरदान लग रहा था..तो मुंबई हमलों के दिन कौन रोया था? और जो रोया था उसने टीवी सेटों पर आकर अपने रोने का ऐलान करने के सिवा क्या किया? क्या वे सभी लोग इस बात से बहुत  ज्यादा खुश नहीं थे कि वे टीवी स्क्रीन के भीतर विक्टिम की सूची में नहीं थे?  
   हाँ सरकार की जो किरकिरी हुई थी उसके बाद सरकार ने कुछ कदम जरूर उठाये जिससे सरकार कि नेकनीयती पर जनता का भरोसा बना रहे.. सरकार पर भरोसे का क्या है वह तो भागवान पर भरोसे के सामान है..लाख छल करने के बाद भी भागवान पर भरोसा बना रहता है क्यूकि जाने के लिए कोई दूसरा हमारे पास नहीं..सरकार भी जानती है कि जनता के पास उसके सिवा कोई और ठौर नहीं इसलिए जनता कितनी ही बार छली जाए , सरकार के ऊपर से उसका भरोसा डिगेगा जरूर टूटेगा नही..
   चलिए बरसियों के इस फैशनेबल  मौसम में एक बरसी और सही लेकिन यह बात मेरे दिल में कांटे की तरह चुभ  तो जरूर रही है कि कि हामरे आत्मा पर अब कोई जख्म लगता क्यों नहीं?

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